जा रहे हो कुंभ नहाने !
क्या पापों को धुल पाओगे?
कुचले जा रहे रोज भगदड़ में
उन अपनों को भूल पाओगे?
तुम समझते मात्र गंगा नहान से
छल पाप कुकर्म बिरोगे है l
गंगा पुत्र यहां भीष्म स्वयं
अपने कर्मों के फल भोगे है l
ढोंगी कहते जो कुंभ नहीं नहाएगा
वे कथित तौर पे देशद्रोही कहलाएगा l
इस भषण के जुमलों से अनपढ़ों को बहलाते हो !
बाल बढ़ा, तिलक लगा, संत सनातन कहलाते हो ?
छल पाप द्वेष - सब मन की निष्पत्ति है
गंगा - स्नान मात्र अब तन की विपत्ति है l
~~ शुभम खरवार ~~✍️