बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

कुंभ का ढोंग


 जा रहे हो कुंभ नहाने !

क्या पापों को धुल पाओगे?

कुचले जा रहे रोज भगदड़ में

उन अपनों को भूल पाओगे?

तुम समझते मात्र गंगा नहान से

छल पाप कुकर्म बिरोगे है l

गंगा पुत्र यहां भीष्म स्वयं 

अपने कर्मों के फल भोगे है l

ढोंगी कहते जो कुंभ नहीं नहाएगा

वे कथित तौर पे देशद्रोही कहलाएगा l

इस भषण के जुमलों से अनपढ़ों को बहलाते हो !

बाल बढ़ा, तिलक लगा, संत सनातन कहलाते हो ?

छल  पाप  द्वेष - सब मन की निष्पत्ति है 

गंगा - स्नान मात्र अब तन की विपत्ति है l


~~ शुभम खरवार ~~✍️